3 days, 23 to 25 December Dharma Sanskriti Mahakumbh was organised by Acharya Shri Jitendranath Ji Maharaj, Peethadheeshwar of Shrinath Sampradaya Devnath Math at Reshimbag Nagpur.
Brahmachari Girish Ji was honoured with title of 'Vedic Vidya Martand' by the Peethadheeshwar and JagatguruShankaracharya of Jyotirmath Swami Vasudevanand Saraswati Ji Maharaj in presence of Rashtriya Swayam sevak Sangh's Sar Sangh Chalak honourable Shri Mohan Bhagwat Ji, 1100 Sadhus and Saints, thousands of Mahakumbh participants and large members of Matrashakti Sangh.
This honour and title was presented to Brahmachari Girish Ji for his life time contribution in the field of education, spreading and securing Ved and Vedic wisdom world wide in the interest of public at large.
Saints have appreciated the work of His Holiness Maharishi Mahesh Yogi Ji for reawakening, restructuring and restoring scattered Veda and Vedic Literature, admired and blessed Brahmachari Girish Ji for continuing Maharishi’s tradition alive and enhancing its dignity further.
Brahmachari Girish in his thankful address said - “All Maharishi Organisations in India and I am seriously engaged and committed in preservation and imparting of Vedic knowledge in the interest of the world family and many programmes are being conducted for the same.”
Brahmachari Girish further said that- “This honour to me is the blessings, kindness, great inspiration and reminder of my responsibilities by the community of Saints of India. I seek your continuous blessings for success in my efforts for establishment of perpetual world peace and creating Heaven on Earth for the benefit of our dear world family.”
All saints have raised their hands and blessed Girish Ji. Thousands of participants of Mahakumbh have extended their support with applause and long ovation.
ब्रह्मचारी गिरीश वैदिक विद्या मार्तण्ड उपाधि से सम्मानित नागपुर के रेशिम बाग में 23 से 25 दिसम्बर तक आयोजित त्रिदिवसीय "धर्म संस्कृति महाकुम्भ" में श्रीनाथ सम्प्रदाय देवमठ के पूज्य पीठाधीश्वर 1008 आचार्य जितेन्द्रनाथ जी महाराज एवं ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानन्द सरस्वती जी ने ब्रह्मचारी गिरीश को "वैदिक विद्या मार्तण्ड" की उपाधि से विभूषित कर सम्मानित किया।
यह सम्मान ब्रह्मचारी गिरीश को शिक्षा के क्षेत्र में उनके विशेष योगदान, विश्वशाँति के प्रयास में उनकी महती भूमिका और वैदिक ज्ञान-विज्ञान के प्रचार-प्रसार, संरक्षण व संवर्धन में उनके द्वारा अब तक किये गये कार्यों की मान्यता स्वरूप प्रदान किया गया। इस अवसर पर शंकराचार्य जी, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सर संघ चालक माननीय मोहन भागवत जी, अनेक महामण्डलेश्वर, मठाधीश, सम्प्रदाय प्रमुख, 1100 साधु-सन्त, हजारों की संख्या में श्रद्धालुजन एवं मातृशक्ति संघ की सदस्या उपस्थित थीं।
सम्मान के क्रम में शंकराचार्य जी एवं आचार्य जितेन्द्रनाथ जी ने महर्षि महेश योगी जी के द्वारा विश्व परिवार के सम्पूर्ण उत्थान के लिये प्रदत्त भावातीत ध्यान, सिद्धि तकनीक और उनके द्वारा वेद विद्या का विश्वव्यापी पुनर्जागरण, पुनर्गठन और पुनस्र्थापन किये जाने की भूरि-भूरि प्रशंसा की और ब्रह्मचारी गिरीश द्वारा महर्षि जी की इस परम्परा को जीवंत रखते हुए इसे आगे ले जाने के लिए साधुवाद और आशीर्वाद दिया।
ब्रह्मचारी गिरीश ने अपने उद्बोधन में कहा कि "वैदिक गुरू परम्परा और महर्षि महेश योगी जी के द्वारा जनमानस के कल्याण हेतु समस्त कार्यक्रमों को महर्षि संस्थान और वे स्वयं आगे बढ़ाने के लिये कृतसंकल्प हैं एवं इस दिशा में अनेक कार्यक्रम संचालित किये जा रहे हैं।" ब्रह्मचारी जी ने कहा "हमारे लिये यह सम्मान साधु संतों का आशीर्वाद है, कृपा है, प्रोत्साहन है और दायित्वों के बोध का पुर्नस्मरण है। आपका आशीर्वाद और कृपा सदा बनी रहे और हम विश्व शाँति की स्थापना, भूतल पर स्वर्ग के अवतरण में अपना कर्तव्य निभा सकें इसके लिये हम संतों के आशीर्वाद के सदा आकांक्षी रहेंगे।"
अपने हाथ उठाकर संतों ने ब्रह्मचारी गिरीश को आशीर्वाद प्रदान किया और हजारों की संख्या में उपस्थितजनों ने कर्तल ध्वनि से अपना समर्थन दिया। ब्रह्मचारी गिरीश ने अपने उद्बोधन में कहा कि "वैदिक गुरू परम्परा और महर्षि महेश योगी जी के द्वारा जनमानस के कल्याण हेतु समस्त कार्यक्रमों को महर्षि संस्थान और वे स्वयं आगे बढ़ाने के लिये कृतसंकल्प हैं एवं इस दिशा में अनेक कार्यक्रम संचालित किये जा रहे हैं।" ब्रह्मचारी जी ने कहा "हमारे लिये यह सम्मान साधु संतों का आशीर्वाद है, कृपा है, प्रोत्साहन है और दायित्वों के बोध का पुर्नस्मरण है। आपका आशीर्वाद और कृपा सदा बनी रहे और हम विश्व शाँति की स्थापना, भूतल पर स्वर्ग के अवतरण में अपना कर्तव्य निभा सकें इसके लिये हम संतों के आशीर्वाद के सदा आकांक्षी रहेंगे।" अपने हाथ उठाकर संतों ने ब्रह्मचारी गिरीश को आशीर्वाद प्रदान किया और हजारों की संख्या में उपस्थितजनों ने कर्तल ध्वनि से अपना समर्थन दिया।